Saturday, December 3, 2011

मेरी जीत की मुस्कान


हर वक्त उसकी चाहत का मोहताज क्यों
हर लम्हा उसकी यादों को समेटना क्यों
हर घड़ी उन कड़ियों को जोड़ना क्यों
जिस वक्त, जिस लम्हें, जिस घड़ी
जिसने सिर्फ और सिर्फ किया रूसवा
उनको समेट कर रोना क्यों 
अपने दामन को कांटों से भरना क्यों
अपनी जिंदगी को लालत देना क्यों
कह दो उन पलों, लम्हें और घड़ियों को
हमें नहीं है तुम्हारी रहमों-करम की जरूरत
रास्ते हम खुद बनाएंगे.
जिस पर कांटे हुए तो क्या
उसे फूलों से भरना का भी है मद्दा 
अभी तो है अंधेरा
कभी तो रहेगी उजियारे की आस
और तब मेरे चेहरे पर होगी
मेरी जीत की मुस्कान