Saturday, May 24, 2014

मीडिया है एक तिलस्म

मीडिया है एक तिलस्म
मुश्किल है इसे पार पाना
मुश्किल है इसे भेद पाना
भेदा तो पछतावोगे
मन मषौट कर रह जाओगे
अगर धोखे से इसे भेद दिया
तो फिर तिलस्म में खो जाओगे
मीडिया है एक तिलस्म

इस तिलस्म की दुनिया है निराली
कही आग, कही पानी
कही सवेरा, कही अंधेरा
कोई अपना, कोई बेगाना
तिलस्म का अपना अफसाना
इन अफसानों में कई फसाना
इन फसानों में उलझते जाना
तिलस्म में कहीं खो सा जाना
चाह कर भी निकल नहीं पाना
मीडिया है एक तिलस्म

उसके होने का एहसास

उसके होने का एहसास 
आज भी है 
बीते पलों की याद 
आज भी है
कई सपनों के टूटने का मर्म 
आज भी है
जो हो न सका उसके छूटने का गम
आज भी है

बंदिशों में जकड़कर पीछे हटने का दर्द
आज भी है
हसीन लम्हों के छूटने का दर्द
आज भी है
वक्त न थमने की कसक
आज भी है
तन्हाई में उसकी यादों का साथ
आज भी है

जिंदगी के खुशनुमा पल का एहसास
आज भी है
भीनी - भीनी खुशबू की महक
आज भी है
ख्वाहिशों की बारिशों में संग भीगने की यादें
आज भी है
आंधियों से लड़कर जीने का सबब
आज भी है

Friday, September 20, 2013

छुटतें राहों की दास्तां

घर छुटा शहर छुटा
छुटी गलियां चौराहे
रिश्ते छुटे दोस्त छुटे
छुटा अपनों का साया
छूटे साथी सारे

स्कूल छुटा बचपन छुटा
छूटी मेरी शरारतें 
दिन छुटा रात छुटी
छुटता गया कारवां
छूटे हमदम सारे

सपना छुटा बातें छुटी
छुटी कई कविताएं
नींद छूटी चैन छूटा
छुटा वक़्त का कारवां
छुटी हसरतें सारी

गम छुटा खुशियां छुटी
एक एक कर सब छुटा
अपना मेरा दूर कंही छुटा
अकेले बैठा वो मुझसे रूठा
हर बार छुटा बार बार छुटा

साथ छुटा साथी छुटे
क्या क्या न छुटा
हमेशा कुछ न कुछ छुटा,
आँखों से आंसू फूटा
कुछ न छुटा
तो बस यादें नहीं छुटी

Wednesday, February 27, 2013

नए ताजे की धून में खोती जा रही जिंदगी


 
नए ताजे की धून में  
खोती जा रही जिंदगी
न तस्‍ब्‍बुर है न चैन है
ये मेरी जिंदगानी है
बस एक रवानगी है
आंधियों का है सफर
जिसमें हम सराबोर हैं

नए ताजे की धुन में
घुटती जा रही जिंदगी
सोचा मैंने क्या पा लिया
क्या मैंने खो दिया
न पाकर चैन न खोकर चैन
बस एक रैन है
अंजान है सफर
जिसमें हम तल्लीन हैं

नए ताजे की धून में
डूबती जा रही जिंदगी
हर कसौटी पर सोच कर
अपने आपको जांच कर
जिंदगी का कैसा सपनीला सफर
जिस पर निकल हैं पड़े
बस यही सोचकर
यही है हमारी जिंदगी

Sunday, November 11, 2012

कुछ अधूरी ख्वाबों का सिलसिला है जिंदगी

कुछ अधूरी ख्वाबों का सिलसिला है जिंदगी
उन ख्वाबों को हर हाल में पा लेना है जिंदगी
इस उधेड़बुन में छूटता जाता है जिंदगी
जी लो जी भर के इस जिंदगी को
क्योंकि अनमोल है ये जिंदगी

Monday, February 6, 2012

जिंदगी की अजीब उलझन

जिंदगी के रास्ते में 
अजब सी एक उलझन है
क्या करूँ क्या न करूँ
इसके बीच में गजब की द्वंद है

जिंदगी के इस मोंड़ पर
मेरा मन बैचेन क्यों है
भविष्य की अधर में लटका मेरा मन है
जाने मेरे दिल को किसकी तलाश है
तलाश है या फिर कोई अजीब सी कशिश है

जिंदगी की अजीब ये उलझन है
किस और जाऊं ये खुद को नहीं पता
एक ऐसी जगह आ खड़ा हूँ
जहां पल छिन दिल में भटकाव है

जिंदगी की इस उलझन में
उमरते-घुमरते द्वंदों में
कुछ अलग करने की चाहत है
बस कुछ कर जाने का जुनून है

Friday, February 3, 2012

जिंदगी की रवानगी

जिंदगी की रवानगी में
जीवन की सांझ में
दुखों के साए को भूलता चला आया
मैं इतनी दूर निकल आया
कि मेरे पीछे कुछ छूट जाने
का एहसास तक नहीं रहा

जिंदगी की रवानगी में
मैं इतनी दूर निकल आया.
मुड़ना जो चाहा मैंने.
कहीं न मैं ठहर पाया.
वक़्त फिसला कुछ ऐसे.
रेत हाथो में समेटा हो.
खूबसूरत कोई सपना जैसे.
अभी अभी आँखों से लुटा हो.


जिंदगी की रवानगी में
मैं काफी दूर निकल आया
अब तो बस यादें हैं
झिलमिलाती सी उन पलों को
अब समेट लेने की चाह लिए
काफी दूर चला आया.