जिंदगी की रवानगी में
जीवन की सांझ में
दुखों के साए को भूलता चला आया
मैं इतनी दूर निकल आया
कि मेरे पीछे कुछ छूट जाने
का एहसास तक नहीं रहा
जिंदगी की रवानगी में
मैं इतनी दूर निकल आया.
मुड़ना जो चाहा मैंने.
कहीं न मैं ठहर पाया.
वक़्त फिसला कुछ ऐसे.
रेत हाथो में समेटा हो.
खूबसूरत कोई सपना जैसे.
अभी अभी आँखों से लुटा हो.
जिंदगी की रवानगी में
मैं काफी दूर निकल आया
अब तो बस यादें हैं
झिलमिलाती सी उन पलों को
अब समेट लेने की चाह लिए
काफी दूर चला आया.
जीवन की सांझ में
दुखों के साए को भूलता चला आया
मैं इतनी दूर निकल आया
कि मेरे पीछे कुछ छूट जाने
का एहसास तक नहीं रहा
जिंदगी की रवानगी में
मैं इतनी दूर निकल आया.
मुड़ना जो चाहा मैंने.
कहीं न मैं ठहर पाया.
वक़्त फिसला कुछ ऐसे.
रेत हाथो में समेटा हो.
खूबसूरत कोई सपना जैसे.
अभी अभी आँखों से लुटा हो.
जिंदगी की रवानगी में
मैं काफी दूर निकल आया
अब तो बस यादें हैं
झिलमिलाती सी उन पलों को
अब समेट लेने की चाह लिए
काफी दूर चला आया.
1 comment:
Very nice keetna accha leekhte ho aap har poetry padh kar lagta hai jaise aap ke apne kahane hai too good.
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